राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारत ने नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के साथ-साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए लगातार प्रयास किया है। आयोग ने सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों में मानवाधिकार-केंद्रित दृष्टिकोण को मुख्यधारा में लाने के साथ-साथ अपने विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से सार्वजनिक प्राधिकरणों और नागरिक समाज के बीच मानवाधिकार जागरूकता और संवेदनशीलता पैदा करने के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकार : -
सामान्यतः विचारण नहीं की जाने वाली शिकायतें
मानव द्वारा मानव के दर्द को पहचानने और महसूस करने के लिए किसी खास दिन की जरूरत नहीं होती है। अगर हमारे मन में मानवता है ही नहीं तो फिर हम साल में पचासों दिन ये मानवाधिकार का झंडा उठाकर घूमते रहें, तो कुछ भी नहीं किया जा सकता है। ये तो वो जज्बा है, जो हर इंसान के दिल में हमेशा ही बना रहता है, बशर्ते कि वह इंसान संवेदनशील हो। क्या हमारी संवेदनाएं मर चुकी हैं?
इस अधिकार के अनुसार गुलामी और गुलामी के व्यापारियों को हर रूप में प्रतिबंधित किया गया है। हालांकि दुर्भाग्य से ये दुर्व्यवहार अब भी अवैध तरीके से चलते हैं।
मानवाधिकारों को प्रोत्साहित करने के लिये यदि कोई अन्य कार्य आवश्यक हो, तो उसे संपन्न करना ।
“आप एक इंसान हैं। वास्तविकता में आपको जन्मजात अधिकार प्राप्त है। आप कानून से पहले मौजूद गरिमा और श्रेय read more के लिए हैं।”
“नागरिकों को राज्य की संपत्ति बनाने के लिए संघर्ष करना हमारे लिए वास्तविक संघर्ष है।”
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जिसके कारण विश्व में समानता, बन्धुत्व व स्वतंत्रता के विचारों को बल मिला.
गुलामी और दास प्रथा पर क़ानूनी रोक है। हालांकि यह अभी भी दुनिया के कुछ हिस्सों में इसका अवैध रूप से पालन किया जा रहा है।
यह आयोग अभियोग या जांच के लिए आवश्यक सूचनाएं व दस्तावेज प्राप्त करने के लिए किसी भी संस्थान का दौरा कर सकता हैं.
विगत वर्षों के प्रश्नपत्र सामान्य अध्ययन (प्रारंभिक परीक्षा)
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